"महारास"
राधा प्राणशक्ति है, एवं श्री कृष्ण प्राण है। इस प्रकार राधाकृष्ण परस्पर एक ही हैं। श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से पूर्ण परब्रम्ह थे। गोपियां / ब्रजबालाएं वास्तव में वेदों की ऋचाएँ थी'।'गोपियों ने श्रीकृष्ण से कहा - ''आप जन्म - जन्म से हमारे प्राणनाथ हो और श्री राधा की तरह ही हम सबको अपने चरणों मे रखो।'' इस पर भगवान श्री कृष्ण ने कहा- "ऐसा ही हो। हे ब्रज देवियो तीन मास व्यतीत होने पर मैं, तुम सब के साथ वृंदावन के सुरम्य रासमंडल मे, महारास का आयोजन करूँगा, तुम लोग मेरे लिए गोलोक से आई हो और मेरे साथ ही गोलोक वापस जाओगी परंतु अभी तुम शीघ्र अपने घर लौट जाओ।"
ऐसा कहकर श्री कृष्ण यमुना किनारे बैठ गए तथा सभी गोपियां उन्हें निहार रही थी। एवं श्रीकृष्ण के मुखमंडल के सुधारस को एकटक देखती रही।
और अपने - अपने घरों को लौट गई तथा व्यग्रता के साथ तीन माह का अर्थात शरद पूर्णिमा की महारात्रि का इंतज़ार करने लगी।
श्रीकृष्ण ने कामदेव का अभिमान तोड़ने के लिए ही गोपियों के साथ महारास का आयोजन किया था तथा श्री कृष्ण ने अपने अधरों से मुरली बजाई तब ब्रज की सभी बाला जो कृष्ण में प्रीति रखती थी, अपने कामकाज त्यागकर दौड़ी चली आई। वह सभी यमुना तट की ओर पहुँची। सोलह हज़ार ब्रजबाला/ गोपियां कामकाज, लोकलाज छोड़कर, उल्टा पुल्टा श्रृंगार कर श्रवण भादो मास मे नदी नालों के पानी के वेग सी दौड़ी चली आयी।
उन्हें देखकर कृष्ण ने समझाया कि ''तुम सब वापस चली जाओ'' किन्तु सभी ब्रजबाला उनके सम्मुख चुपचाप खड़ी रही एवं विरहाकुल होकर कहा कि- ''तुम्हारे द्वारा नाम लेकर बुलाने, तुम्हारी मुरली की तान सुनकर, तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी मोहिनी मूरत याद कर ही हम सब आयी है यहाँ, हम सब तुम्हारे चरणों की सेवा करना चाहते है जैसे माँ लक्ष्मी वैकुंठ मे करती है, हमे स्वयं से अलग न करो।''
श्रीकृष्ण ने गोपियों की भक्ति और प्रेम देखकर कहा- "जैसी तुम्हारी इच्छा।"
उसके बाद श्रीकृष्ण ने योगमाया को बुलाकर आज्ञा दी -"श्रीयमुना तट पर रासमंडल का निर्माण करो।"
रासमंडल
जूही, मालती, कुंद, माधवी का स्पर्श कर के बहने वाली शीतल एवं सुगंधित मल्य वायु से सारा वनप्रांत सुवासित हो रहा था, भ्रमरों के मधुर गुंजार से मनोहरता बढ़ रही थी, वृक्षों में नये पल्लव निकल आये, कोकिल की कू कू ध्वनि तथा नौ लाख रासगृहों से संयुक्त वह वृंदावन बड़ा ही मनोहर जान पड़ता था। चंदन, अगरु, कस्तूरी, कुमकुम की सुगंध सब ओर फैल गई थी। कस्तूरी, चंदन युक्त चंपा के फूलों से रचित वह स्थान शोभायमन हो रही थी। रत्नमय प्रदीपो के प्रकाश सब ओर फैल रहे थे। तथा सभी प्रकार के फूलों और मालाओं से सुसज्जित गोलाकार रासमंडल, योगमाया द्वारा बनाया गया था। जो स्वर्ग के दृश्य से भी अतिसुन्दर एवं मन मोहने वाला था।
श्रीकृष्ण की आज्ञा पर योगमाया ने रत्नजटित रासमंडल का निर्माण किया तथा सभी गोपियों और ब्रजबालाओ के लिए साज सज्जा की वस्तुएं प्रकट की। सभी गोपियां इच्छानुसार सोलह श्रृंगार कर रासमंडल में उपस्थित हुई। सभी प्रकार के गाने व वाद्ययंत्र बजने लगे, तथा श्री कृष्ण ने राधारानी एवं संपूर्ण सखियों के साथ रासमंडल में प्रवेश किया, एवं सभी दो - दो गोपियों के बीच स्वयं प्रकट हुए। तथा रासमंडल में बड़े आनंद के साथ श्यामसुंदर का हाथ पकड़कर सभी गोपियां नृत्य में मग्न हो गयी।
बाएं और दाएं सब ओर सिर्फ केशव ही थे, गोपियां अनेक रूप धारण करने वाले की माया न भाप सकी और योगमाया के प्रभाव से सभी को यह भान होने लगा कि कृष्ण उन के साथ आनंद साथ नृत्य कर रहे है, एवं सभी ब्रजबालाओ की मनोरथ पूरी हुई।
इसीलिए इसे "महारास" कहा गया।
उस मनोरम दृश्य को देखने ब्रम्हा, विष्णु, महेश (युगल जोड़ी), समस्त देवतागण, यहा तक की सम्पूर्ण सौरमंडल ठहर गया था।
और श्यामसुंदर और ब्रजबालाओ के भाग्य की बड़ाई करने लगे।
आकाशमंडल में चित्रकारी से, चंद्रमा, सोलह कलाओं के साथ अपनी पूरी छटा बिखेर रहा था तारे भी स्थिर थे। चन्द्रमा ने प्रसन्न होकर रासमंडल में अमृत बरसाया, वह एक रात्रि छह मास तक चली थी, और कृष्ण की इस लीला के प्रभाववश रात्रि बढ़ने का हाल किसी ने नही जाना।
और श्यामसुंदर और ब्रजबालाओ के भाग्य की बड़ाई करने लगे।
आकाशमंडल में चित्रकारी से, चंद्रमा, सोलह कलाओं के साथ अपनी पूरी छटा बिखेर रहा था तारे भी स्थिर थे। चन्द्रमा ने प्रसन्न होकर रासमंडल में अमृत बरसाया, वह एक रात्रि छह मास तक चली थी, और कृष्ण की इस लीला के प्रभाववश रात्रि बढ़ने का हाल किसी ने नही जाना।
उस रात्रि का नाम प्रेम रात्रि एवं अमृत रात्रि, अहो रात्रि के नाम पर प्रकट हुआ।
श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात्रि ब्रजबालाओ के साथ अनेक तरह के बाजो के साथ छः राग, छत्तीस रागिनी के साथ महारास किया तथा वंशी में अनेक तरह के उप बजाकर ब्रजबालाओ का मन मोह लिया, उस आनंदरूपी नाच में गोपियां अपनी सुध बुध खो बैठी, साथ ही राग रागिनी से ऐसा समा बंधा की यमुना की जल थम गई, बहती वायु, पशु पक्षी भी चरना - उड़ना भूलकर, सब चित्रकारी से ठहर गए थे।
एक ब्रजबाला ने नंदकुमार बनकर, दूसरी ने वृषभानु बनकर श्रीकृष्ण राधा के विवाह का शिष्टाचार किया, राधा के हाथ मे कंकण बांधकर कृष्ण से खोलने को कहा अथवा कृष्ण से कंकण न खुलने पर हँसने लगी।
श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात्रि ब्रजबालाओ के साथ अनेक तरह के बाजो के साथ छः राग, छत्तीस रागिनी के साथ महारास किया तथा वंशी में अनेक तरह के उप बजाकर ब्रजबालाओ का मन मोह लिया, उस आनंदरूपी नाच में गोपियां अपनी सुध बुध खो बैठी, साथ ही राग रागिनी से ऐसा समा बंधा की यमुना की जल थम गई, बहती वायु, पशु पक्षी भी चरना - उड़ना भूलकर, सब चित्रकारी से ठहर गए थे।
एक ब्रजबाला ने नंदकुमार बनकर, दूसरी ने वृषभानु बनकर श्रीकृष्ण राधा के विवाह का शिष्टाचार किया, राधा के हाथ मे कंकण बांधकर कृष्ण से खोलने को कहा अथवा कृष्ण से कंकण न खुलने पर हँसने लगी।
"दूल्लह नंदकुमार, दुलहिनि श्रीराधाकुंवरि ।
संतनप्राणआधार अचल रहे जोड़ी सदा।।"
फिर श्रीकृष्ण राधा का विधिपूर्वक पूजन कर खुद को धन्य माना। तथा अंत समय में आत्ममुक्ति पाकर श्रीकृष्ण के चरणों में स्थान प्राप्त किया।
उक्त रात्रि में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण था, भगवान श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से युक्त परब्रम्ह है एवं गोपियां/ ब्रजबालाए सोलह श्रृंगार से सजी हुई थी। अतः
यही श्रीकृष्ण की महारासलीला की कथा है, जिसे पढ़- सुनकर लोग धन्य - धन्य होते है।
श्री वृन्दावन धाम के निधिवन में हर रात्रि श्रीकृष्ण के आने का साक्षात प्रमाण मिलता है। इसीलिए श्रृंगार का सामान इत्यादि प्रति रात्रि वहां रखी जाती है।
" धनिवृन्दावनधन्यसुख धन्यश्यामधनिरास ।
धनिधनिमोहनगोपिका नितनवकरतहुलास ।। "
(लेखक द्वारा )
"श्री राधाकृष्ण का प्रेम अलौकिक था। जो इस लोक से, इस लोक के बंधनों से परे था। शारिरिक आकर्षण या सांसारिक बंधनों से मुक्त था।
आज के समय में ऐसे प्रेम की कल्पना करना भी अकल्पनीय है।"
महारास या रासलीला के विषय मे अनुचित बात या भ्रांति फैलाने या कहने वालों के लिए ये जानना जरूरी है कि 'महारास में आत्मा और परमात्मा का मिलन हुआ था शरीरों का नही।' अथवा कृष्ण को अपना ईश्वर मानते हुए अपनी भक्ति के वशीभूत होकर ब्रजबालाएं, गोपियां - जो की वेदों की ऋचाएँ थी एवं प्रत्यक्ष रूप से महारास में सम्मिलित हुई थी। उनके प्रेम, समर्पण, भक्ति की आज कोई तुलना नहीं।
महारास या रासलीला के विषय मे अनुचित बात या भ्रांति फैलाने या कहने वालों के लिए ये जानना जरूरी है कि 'महारास में आत्मा और परमात्मा का मिलन हुआ था शरीरों का नही।' अथवा कृष्ण को अपना ईश्वर मानते हुए अपनी भक्ति के वशीभूत होकर ब्रजबालाएं, गोपियां - जो की वेदों की ऋचाएँ थी एवं प्रत्यक्ष रूप से महारास में सम्मिलित हुई थी। उनके प्रेम, समर्पण, भक्ति की आज कोई तुलना नहीं।
जो भावनाएं आज हमारे मन मे अपने ईश्वर के लिए है वही भावनाएं उस वक्त गोपियों के मन मे श्री कृष्ण के लिए थी।
"शरद पूर्णिमा - 30 अक्टूबर 2020"
★ साभार -
• महारास , रासमंडल - सुख सागर दसवाँ स्कंध
(अति प्राचीन) ।।
• चित्र आभार - (कल्याण - श्रीराधामाधव अंक (वर्ष 2011) )।।
''प्रज्ञा शर्मा"
pragyawritingloudly.blogspot.com
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ReplyDeleteJai Shri Krishna
🙏☺
Deleteसुंदर आलेख, 😊
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
Deleteसुंदर आलेख, 😊
ReplyDelete🙏🥰
DeleteNice info ❤
ReplyDeleteThank you 🙂
Delete🙏🏻👍
ReplyDeleteThank you ☺
DeleteRadhe krishna 🥰🙏🙏
ReplyDeleteRadhe Radhe 🥰
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ReplyDeleteThank u 🙏😊
DeleteVery good post about Sharad Purnima. Highly informative. Keep up the good work
ReplyDeleteThank u 😊
DeleteNice post
ReplyDeleteThank u 😊
DeleteHare Krishna 🙏
ReplyDeleteBahut sunder 🌸
Thank you 😊🌺
DeleteIt's so nice. Keep on sharing
ReplyDeleteThank you ☺🙏
DeleteInformative ❤️
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DeleteLovely 💛. Great article👍
ReplyDeletebeautifully described. Keep it up Miss. Blogger ♥️😘
Jai Shri Krishna 🙏
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Deleteजय श्री कृष्णा 🙏
Thank you so much ♥️💫
बहुत खूब बेहतरीन लेख। 🌹
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा 🙏💐
जय श्री कृष्ण 🙏
ReplyDeleteThank u 😇
Lovely Post 💞 my fav Krishna.
ReplyDeleteNice to read. Radhe radhe🙏
Thank you so much ☺
Deleteराधे राधे 🙏💫
Very good information 👍
ReplyDeletePerfect illustration 💙
Shri Radhe 🙏
Thank you so much ☺
Deleteराधे राधे 🙏🌸
Nice post👍👍 जय श्री कृष्ण।।
ReplyDeleteThank you 😊 sir
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