जीवन में ज्ञान, कर्म और उपासना तीनों में से कोई भी मार्ग चुन लें, समस्याएं हर मार्ग पर आएंगी। लेकिन अच्छी बात यह है कि हर समस्या अपने साथ एक समाधान लेकर ही चलती है। समाधान ढूंढने की भी एक नज़र होती है। सामान्यतः हमारी दृष्टि समस्या पर पड़ती है , उसके साथ आये समाधान पर नहीं।श्री रामचरितमानस के सुंदरकांड में जब श्री हनुमान जी लंका की ओर उड़े तो सुरसा ने उन्हें खाने की बात कही। पहले तो श्री हनुमानजी ने उनसे विनती की। इस विनम्रता का अर्थ है शांत चित्त से, बिना आवेश में आये समस्या को समझ लेना। पर सुरसा नहीं मानी और उस ने अपना मुंह फैलाया।
"जोजन भरि तेहि बदनु पसारा।कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा।।"
उसने योजनभर ( चार कोस में) मुँह फैलाया। तब हनुमान जी ने अपने शरीर को उससे दोगुना बढ़ा लिया ।
"सोरह जोजन मुख तेहि ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ।।"
उसने सोलह योजन का मुख किया, हनुमानजी तुरंत ही बत्तीस योजन के हो गए।
यह घटना बता रही है कि सुरसा बड़ी हुई तो श्री हनुमानजी भी बड़े हुए । श्री हनुमानजी ने सोचा ये बडी, मैं बड़ा इस चक्कर में तो कोई बड़ा नही हो पाएगा । दुनिया मे बड़ा होना है तो छोटा होना आना चाहिए।
छोटा होने का अर्थ है विनम्र होना अर्थात अपने भीतर के विनम्रता का परिचय देना। दुनिया जब भी जीती जाएगी विनम्रता से ही जीती जाएगी। बड़ा होकर सिर्फ किसी को हराया जा सकता है।
इसीलिए श्री हनुमानजी ने छोटा रूप लिया और सुरसा के मुँह से बाहर आ गए।।
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DeleteGood👍keep it up 😇
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DeleteMotivational 😎
ReplyDeleteYeah.. Thank u 🥰😎
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ReplyDeleteThanks 😊
Deleteआज के दौर में लोगों में धैर्य एवं विश्वास की कमी है। सराहनीय लेख।
ReplyDeleteTrue👍
DeleteThank you 🙏😊
Nice one thought full article
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DeleteAap achha likhate ho. Aap quora par bhi likho
ReplyDeleteThank u 🌸🙏
DeleteYeah, I'll try. ☺